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Punjab News: पंजाब की हस्तकला का अस्तित्व खतरे में! फुलकारी के धागों में उलझी परंपरा की डोर

Punjab News: होशियारपुर के कमलजीत माथुरु अपने परिवार की छठी पीढ़ी से इस दुर्लभ कला को जीवित रखे हुए हैं। उनके पिता रूपन माथुरु भी इस कला के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं। एक समय था जब यह कला खूब फलती फूलती थी लेकिन अब इसे सीखने वाले मिलना मुश्किल हो गया है। सरकार से किसी तरह की सहायता नहीं मिल रही है।

हुनर नहीं धंधा बन गई है आज की सोच

कमलजीत बताते हैं कि आज की पीढ़ी में इस कला को सीखने का धैर्य नहीं है। उन्हें जल्दी पैसे कमाने की जल्दी है। पहले होशियारपुर हाथी दांत के इनले वर्क के लिए मशहूर था लेकिन अब यह लुप्तप्राय शिल्पों में गिना जाने लगा है। अब सिर्फ लगभग 70 कारीगर ही बचे हैं।

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पितल और तांबे के बर्तन भी खो रहे चमक

अमृतसर के जंडियाला गुरु में तांबे और पीतल के बर्तनों की कारीगरी अब दम तोड़ रही है। कभी यह कारीगरी 500 परिवारों का सहारा थी लेकिन अब केवल 30 परिवार ही जुड़े हैं। यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है फिर भी मांग बहुत घट चुकी है।

हस्तनिर्मित जुत्तियां मशीनों से हार रही हैं

पटियाला और फाजिल्का की हाथ से बनी पंजाबी जुत्तियां अपनी सजावट और कढ़ाई के लिए जानी जाती हैं। लेकिन मशीन से बनी सस्ती जुत्तियों ने इनके बाजार को छोटा कर दिया है। कारीगरों का कहना है कि अगर सरकार सहयोग करे तो यह बड़ा रोजगार स्रोत बन सकता है।

फुलकारी से लेकर परांदे तक सबकुछ संकट में

फुलकारी की चमक अब फीकी पड़ गई है। असली फुलकारी को पहचानने वाले बहुत कम हैं। परांदे बनाना महंगा हो गया है। खेस और पंजा दरी अब केवल नाममात्र की रह गई हैं। लकड़ी के खिलौने भी अब चीनी प्लास्टिक के खिलौनों से दब चुके हैं।

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